न जाने कितने दिनों बाद तुम फिर आज याद आए
रास्तो पे बिछे हुए सूखे पत्ते आज मेरे पैरो से लड़ गए
ऐसा लगा इस आहट में तुम्हारी ही कोई आह छुपी होगी
जिन गलियों से आज मुखातिब हुए अपनी परछाई वहा छोड़ गए
ऐसा लगा उन अंधेरो में तुमसे ही मुलाकात होगी
भूल गए थे ठौर ठिकाना माना जैसे यह कल की ही कोई बात है
ऐसा लगा अनजाने में ही सही तुमसे हम गुफ्तगू कर गए
जब घर पहुंचे तो याद आया तुम्हारा वह हँसना-गुनगुनाना
'आज हमसे बाते नहीं करोगे क्या?' ऐसे अरमान जगा गए
घर की दीवारे आज खाली हो चुकी है इनमे रंग नहीं सुहा रहे
यह आयना भी मुझसे रूठ चला है शायद अंदर से कही टूटा होगा
खिड़कियों के परदे हलचल नहीं करते आजकल, शायद
यह दिया मेरे सपनो का ओझल हुआ और बुझ गया होगा
लौटके न आओगे यह जानकर के अनजान हु, शायद इसलिए आज मैं बेबात हु, बेताब हु
यह अशियाना मुझे और जीने न दिया, आज फिर से रास्ते ढूंढने दिल निकल गया
रास्तो पे मुलाकात हुई ना तुम रुके ना हम रुके, कुछ तुम चले , कुछ हम चले
आँखे यह नाम न हो सकी अंधे बने और चल दिए, कुछ तुम अलग , कुछ हम अलग
और... रास्तो पे बिछे हुए सूखे पत्ते आज मेरे पैरो से वापिस लड़ गए
ऐसा लगा इस आहट में तुम्हारी ही कोई आह छुपी होगी
जिन गलियों से आज मुखातिब हुए अपनी परछाई वापिस छोड़ गए
ऐसा लगा उन अंधेरो में तुमसे फिर मुलाकात होगी
ना जाने कितने दिनों बाद तुम याद आए , याद आए , याद आ ही गए.
~~प्रसेनजित सरकार~~
रास्तो पे बिछे हुए सूखे पत्ते आज मेरे पैरो से लड़ गए
ऐसा लगा इस आहट में तुम्हारी ही कोई आह छुपी होगी
जिन गलियों से आज मुखातिब हुए अपनी परछाई वहा छोड़ गए
ऐसा लगा उन अंधेरो में तुमसे ही मुलाकात होगी
भूल गए थे ठौर ठिकाना माना जैसे यह कल की ही कोई बात है
ऐसा लगा अनजाने में ही सही तुमसे हम गुफ्तगू कर गए
जब घर पहुंचे तो याद आया तुम्हारा वह हँसना-गुनगुनाना
'आज हमसे बाते नहीं करोगे क्या?' ऐसे अरमान जगा गए
घर की दीवारे आज खाली हो चुकी है इनमे रंग नहीं सुहा रहे
यह आयना भी मुझसे रूठ चला है शायद अंदर से कही टूटा होगा
खिड़कियों के परदे हलचल नहीं करते आजकल, शायद
यह दिया मेरे सपनो का ओझल हुआ और बुझ गया होगा
लौटके न आओगे यह जानकर के अनजान हु, शायद इसलिए आज मैं बेबात हु, बेताब हु
यह अशियाना मुझे और जीने न दिया, आज फिर से रास्ते ढूंढने दिल निकल गया
रास्तो पे मुलाकात हुई ना तुम रुके ना हम रुके, कुछ तुम चले , कुछ हम चले
आँखे यह नाम न हो सकी अंधे बने और चल दिए, कुछ तुम अलग , कुछ हम अलग
और... रास्तो पे बिछे हुए सूखे पत्ते आज मेरे पैरो से वापिस लड़ गए
ऐसा लगा इस आहट में तुम्हारी ही कोई आह छुपी होगी
जिन गलियों से आज मुखातिब हुए अपनी परछाई वापिस छोड़ गए
ऐसा लगा उन अंधेरो में तुमसे फिर मुलाकात होगी
ना जाने कितने दिनों बाद तुम याद आए , याद आए , याद आ ही गए.
~~प्रसेनजित सरकार~~
Nice one ps..
ReplyDeleteNice one ps..
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteBahut khoob
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