Tuesday, April 18, 2017

शोर...हर तरफ शोर

हुत शोर है...
आजकल
तेरी आवाज़ नहीं सुन पाता
तेरा चेहरा नहीं देख पाता ...दिल दुखता है...दर बदर तर बतर
यादो के कैनवस पर रंगों की कलम नहीं चला पाता
यह रंग भी बेरंग हो चुके है लगता है
लगता है यह रात भी ऐसे ही गुजरने को है.
शोर..हर तरफ शोर

मुझे याद है वो कॉलेज की गलिया
जहा अक्सर तुमसे नज़रे मिल जाती थी
हलचल सी एक मचती थी माथे पे लकीरे तन जाती थी
तुम्हारा वो मुस्कुराके देखना
तिरछी नजरो से घायल कर जाना
आज घायल मन को दवा भी रास ना आती है
मंजिल के सामने होके भी सांसे थम जाती है
बहुत शोर है...हर तरफ हर जगह हर दफा

मुझे याद है वो चोरी छिपे मिलना
हॉस्टल के गलियों से भाग कर तुम्हारे घर की तरफ बढ़ना
दबे दबे पाँव से थमें थमें साँसों तक
तुम्हारा गुजरना भागना चहकना बहकना
यह दरमियाँ आज ठिकाना पूछ बैठी
हमसे तुम्हारा पता पूछ बैठी
लगता है यह शोर तुम्हे दूर लेके चला गया
मेरे सपनो की कायनात को तुम जला बैठी

आज भी मेरे मन के किताब में तुमको मैंने लिखा है
चाहे जितना भी दर्द हो सुकून मुझे तुम में दिखा है
जानता हू मुमकिन नहीं तुमसे दुबारा मिल पाना
पर हा..मेरे मन के अंतर्मन में तुम को ही रखा है
मैं जानता हू यह दुनिया बहुत छोटी है
कही न कही तो तुमसे जरुर मुलाकात होगी
और उस दिन तुम्हे भी एहसास होगा
यह शोर ही है सीने में जो तुमसे ही आया है
तुमसे ही जायेगा तुम्हारा होके रह जाएगा

हर तरफ यह शोर तुम को मुझ तक पहुचायेगा
तेरी आवाज़ को मेरी धड़कन बनाएगा
सुबह कि पहली किरण से तुमको यह जगायेगा
यादो के कैनवास को रंगों से यह सजायेगा
रहने दो जरा सा शोर जिंदगी में
तनहा हमसे न जिया जाएगा

लगता है आज यह दिन ऐसे ही गुजर जायेगा
शोर..हर तरफ शोर

बस यही शोर रह जायेगा
बस यही शोर रह जायेगा

~प्र.स~





No comments:

Post a Comment