Sunday, October 23, 2011

एक मुलाकात
-प्रसेनजित सरकार 


आज फिर मुलाकात हुई
उनसे और उनकी तन्हाई से
ऐसा लगा की खुशियों की बारिश कर दू
पर रोक लिया
अपने आप को 
बस चुपचाप देखता ही रहा उनकी वही दो आँखे
ऐसा लगा जैसे अभी हँस देगी
पता न था की उनको किस चीज का गम था
सौदागर तो हम ठहरे थे
जो निकल पड़े थे उनसे मिलने
हा मुलाकात हुई पर
कुछ बोल न पाए
ऐसा लगा की ओढ़ दू आँचल उनके सिरहाने
पर रोक लिया
अपने आप को
सामने सफ़ेद कपडे में लिपटी 
अपनी चुदियाँ तोड़ रही थी वोह
बारिश हुई अरमानो की
जिन्होंने धो दिया माथे की सिन्दूर को
ऐसा लगा लाल हो गयी है मेरी दुनिया
बढ़ा दू अपना हाथ उनके चहरे  तक
पर रोक लिया 
आँखे बंद होने लगी
पूरी दुनिया अँधेरी दिखने लगी
सन्नाटा पूरा छा गया
और वोह हमसे चिपक के रोने लगी
धड़कने थम सी गयी
जैसे पहले भी कभी ऐसा हुआ होगा
जब हमने उनको पहली दफा देखा होगा
और आज
आखिरी बार 
वोही ख़ामोशी
वोही हालात
पर इस बार मौत हमारी हुई
और तन्हाई में वोह आंसू बहाने लगी
ऐसा लगा समांलू उनको अपनी बाहों में
पर रोक लिया
अपने आप को
आँखे बन्द हुई और वोह गायब हो गयी
यह मुलाकात बस खत्म हुई
वोह चली गयी
और हम जलते रहे
धुआ धुआ
नामोनिशा मिटता गया
खत्म हुआ यह सिलसिला
पर हां
कल फिर कही उनसे मुलाकात होगी
वोही तन्हाई और वही बात होगी
शायद कल फिर 
एक और मुलाकात होगी
...


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